टेक्नोलॉजी जगत में हड़कंप मच गया है जब लेनोवो ने अपने एक वरिष्ठ सेल्समैन को नौकरी से निकाल दिया, और उसके बाद मामला अदालत तक जा पहुंचा। इस मामले ने तब और तूल पकड़ लिया, जब 66 वर्षीय रिचर्ड बेकर, जिन्हें कंपनी से निकाला गया था, ने लेनोवो से 1.5 मिलियन डॉलर (लगभग 12.58 करोड़ रुपये) के हर्जाने की मांग कर दी।
क्या है मामला?
रिचर्ड बेकर, जो कि लेनोवो के एक वरिष्ठ सेल्समैन थे, ने आरोप लगाया है कि उन्हें एक स्वास्थ्य संबंधी समस्या के कारण होटल की लॉबी में यूरीन करने के बाद नौकरी से निकाल दिया गया। रिचर्ड का कहना है कि वह क्रोनिक ब्लैडर कंडीशन से जूझ रहे हैं और यह उनके नियंत्रण में नहीं था। उनका दावा है कि कंपनी ने उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होने के बावजूद उन्हें नौकरी से निकाल दिया, जो कि न्यूयॉर्क के मानवाधिकार कानूनों का उल्लंघन है।
अदालत में दायर किया केस
रिचर्ड ने न्यू यॉर्क की अदालत में मामला दर्ज किया है, जिसमें उन्होंने कंपनी पर विकलांगता के आधार पर भेदभाव करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि लेनोवो ने उनके साथ सहानुभूति नहीं दिखाई और बिना उचित जांच के उन्हें निकाल दिया।
क्या कहती है रिपोर्ट?
रिपोर्ट के अनुसार, घटना इस साल फरवरी की है। रिचर्ड का कहना है कि वह टाइम्स स्क्वायर के पास स्थित अपने होटल लौट रहे थे, जब ब्लैडर की समस्या के कारण वह होटल की मेन लॉबी से अलग एक फ्लोर पर मौजूद बरामदे में यूरीन करने को मजबूर हो गए। दुर्भाग्य से, उनके एक को-वर्कर ने उन्हें देख लिया और एचआर को इस बारे में जानकारी दी।
लेनोवो की प्रतिक्रिया का इंतजार
इस मामले में लेनोवो की ओर से अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि कंपनी इस पर क्या कदम उठाती है। रिचर्ड के आरोपों ने कंपनी की छवि पर सवालिया निशान लगा दिया है, और आने वाले समय में यह मामला और भी बड़ा रूप ले सकता है।
यह मामला न सिर्फ तकनीकी उद्योग में चर्चा का विषय बन गया है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या कंपनियों को अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य समस्याओं को नजरअंदाज करने का हक है?
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